श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  15.3.73 
तवामृतरसप्रख्यं हस्तस्पर्शमिमं प्रभो।
लब्ध्वा संजीवितोऽस्मीति मन्ये कुरुकुलोद्वह॥ ७३॥
 
 
अनुवाद
प्रभु! आपके करकमलों का यह स्पर्श अमृत के समान शीतल और सुखद है। हे कुरुकुलनाथ! इसे पाकर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे नया जीवन मिल गया हो। 73।
 
Prabhu! This touch of your hands is as cool and pleasant as the nectar of nectar. O Kurukulanath! I feel that after receiving this, I have got a new life. 73.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.