श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  15.3.54 
भवदीयमिदं सर्वं शिरसा त्वां प्रसादये।
त्वदधीना: स्म राजेन्द्र व्येतु ते मानसो ज्वर:॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
राजेन्द्र! यह सब आपका है। मैं आपके चरणों में सिर झुकाकर प्रार्थना करता हूँ कि आप सुखी हों। हम सब आपके अधीन हैं। आपकी मानसिक चिन्ताएँ दूर हों। ॥54॥
 
Rajendra! All this is yours. I bow my head at your feet and pray that you become happy. We are all under your control. Your mental worries should go away. ॥ 54॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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