श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  15.3.53 
इयं हि वसुसम्पूर्णा मही सागरमेखला।
भवता विप्रहीणस्य न मे प्रीतिकरी भवेत्॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
यदि आप मुझे त्याग देंगे तो धन-धान्य से परिपूर्ण तथा समुद्रों से घिरी हुई यह सम्पूर्ण पृथ्वी भी मुझे सुखी नहीं रख सकेगी ॥ 53॥
 
If you abandon me, even this entire earth filled with wealth and grains and surrounded by oceans will not be able to keep me happy. ॥ 53॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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