श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  15.3.42 
योऽहं भवन्तं दु:खार्तमुपवासकृशं भृशम्।
जिताहारं क्षितिशयं न विन्दे भ्रातृभि: सह॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
तुम दुःख से व्याकुल हो, उपवास के कारण अत्यन्त दुर्बल हो, भूमि पर लेटे हुए हो, भोजन भी त्याग दिया है, और मैं अपने भाइयों सहित तुम्हारी स्थिति का समाचार भी नहीं पा सका ॥42॥
 
You are restless with grief and are very weak due to fasting, and are reclining on the ground. You have even abstained from eating. And I, along with my brothers, were not even able to find out about your condition. ॥ 42॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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