श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  15.3.39 
तत्राहं वायुभक्षो वा निराहारोऽपि वा वसन्।
पत्न्या सहानया वीर चरिष्यामि तप: परम्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
हे वीर! मैं वहाँ वायु पीकर या उपवास करके रहूँगा और अपनी पत्नी सहित उत्तम तप करूँगा॥ 39॥
 
Valiant one! I will stay there by drinking air or fasting and will perform the best penance along with my wife.॥ 39॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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