श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  15.3.38 
उचितं न: कुले तात सर्वेषां भरतर्षभ।
पुत्रेष्वैश्वर्यमाधाय वयसोऽन्ते वनं नृप॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
‘तात! भरतश्रेष्ठ नरेश्वर! हमारे कुल के सभी राजाओं को यही उचित है कि वे अन्तकाल में अपने पुत्रों को राज्य देकर स्वयं वन में चले जाएँ ॥38॥
 
‘Tat! Bharatshreshtha Nareshwar! It is appropriate for all the kings of our clan that in their last stages, after giving the kingdom to their sons, they themselves go to the forest. 38॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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