श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  15.3.37 
चीरवल्कलभृद् राजन् गान्धार्या सहितोऽनया।
तवाशिष: प्रयुञ्जानो भविष्यामि वनेचर:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
हे राजन! वहाँ मैं इस गांधारी के साथ वस्त्र और छाल धारण करके वन में विचरण करूँगी और तुम्हें आशीर्वाद देती रहूँगी॥ 37॥
 
O King! There I will roam in the forest with this Gandhari, wearing a cloth and bark and will keep blessing you.॥ 37॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.