श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  15.3.32-33 
द्रौपद्या ह्यपकर्तारस्तव चैश्वर्यहारिण:॥ ३२॥
समतीता नृशंसास्ते स्वधर्मेण हता युधि।
न तेषु प्रतिकर्तव्यं पश्यामि कुरुनन्दन॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
कुरुनन्दन! जिन क्रूर लोगों ने द्रौपदी को सताया और आपका धन छीन लिया, वे मेरे पुत्र क्षत्रियधर्मानुसार युद्ध में मारे जा चुके हैं। अब उनके लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। ॥32-33॥
 
Kurunandan! Those cruel people who tortured Draupadi and snatched your wealth, my sons have been killed in the war as per the Kshatriyadharma. Now there seems to be no need to do anything for them. ॥ 32-33॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.