श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 29-30h
 
 
श्लोक  15.3.29-30h 
इत्युक्त्वा धर्मराजानमभ्यभाषत कौरव:॥ २९॥
भद्रं ते यादवीमातर्वचश्चेदं निबोध मे।
 
 
अनुवाद
अपने मित्रों से ऐसा कहकर धृतराष्ट्र ने राजा युधिष्ठिर से कहा, 'कुन्तीनन्दन! आपका कल्याण हो। मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, उसे सुनिए।'
 
Having said this to his friends, Dhritarashtra said to King Yudhishthira, 'Kuntinandan! May you be blessed. Listen to what I have to say.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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