श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 3: राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिर और कुन्ती आदिका दु:खी होना  »  श्लोक 23-24h
 
 
श्लोक  15.3.23-24h 
सोऽहमेतान्यलीकानि निवृत्तान्यात्मनस्तदा॥ २३॥
हृदये शल्यभूतानि धारयामि सहस्रश:।
 
 
अनुवाद
इस प्रकार मैं अपने हृदय में उन हजारों गलतियों को रखता हूँ जो मैंने की हैं, जो इस समय काँटों के समान पीड़ा देती हैं।
 
In this way I keep in my heart the thousands of mistakes I have made, which at this moment cause pain like thorns. 23 1/2.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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