श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 29: धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध  »  श्लोक 48-49h
 
 
श्लोक  15.29.48-49h 
तव प्रसादाद् भगवन् विशोकोऽयं महीपति:॥ ४८॥
यथा स्याद् भविता चाहं कुन्ती चेयं वधूस्तव।
 
 
अनुवाद
हे प्रभु! आप कृपा करके हम पर कृपा कीजिए, जिससे यह राजा, मैं और आपकी पुत्रवधू कुन्ती, हम सब लोग किसी भी प्रकार शोक से मुक्त हो जाएँ॥48 1/2॥
 
Lord! By your grace, please bless us so that this king, I and your daughter-in-law Kunti, all of us become free from grief in whatever way possible. ॥ 48 1/2 ॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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