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श्लोक 15.29.35  |
वैशम्पायन उवाच
तच्छ्रुत्वा विविधं तस्य राजर्षे: परिदेवितम्।
पुनर्नवीकृत: शोको गान्धार्या जनमेजय॥ ३५॥ |
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अनुवाद |
वैशम्पायन कहते हैं: जनमेजय! राजा धृतराष्ट्र के नाना प्रकार के विलाप सुनकर गांधारी का दुःख फिर ताज़ा हो गया। 35. |
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Vaishmpayana says: Janamejaya! On hearing the various laments of King Dhritarashtra, Gandhari's grief became fresh again. 35. |
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