श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 29: धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  15.29.35 
वैशम्पायन उवाच
तच्छ्रुत्वा विविधं तस्य राजर्षे: परिदेवितम्।
पुनर्नवीकृत: शोको गान्धार्या जनमेजय॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायन कहते हैं: जनमेजय! राजा धृतराष्ट्र के नाना प्रकार के विलाप सुनकर गांधारी का दुःख फिर ताज़ा हो गया। 35.
 
Vaishmpayana says: Janamejaya! On hearing the various laments of King Dhritarashtra, Gandhari's grief became fresh again. 35.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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