श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 29: धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध  »  श्लोक 26-27h
 
 
श्लोक  15.29.26-27h 
किं तु तस्य सुदुर्बुद्धेर्मन्दस्यापनयैर्भृशम्॥ २६॥
दूयते मे मनो नित्यं स्मरत: पुत्रगृद्धिन:।
 
 
अनुवाद
परंतु मैं पुत्रों में आसक्त होकर उस मन्दबुद्धि दुर्योधन के अन्याय से मारे गए अपने समस्त पुत्रों को सदैव स्मरण करता हूँ; इसीलिए मेरे हृदय में महान् दुःख होता है ॥26 1/2॥
 
But I, who is attached to my sons, always remember all my sons who have been killed by the injustices of that slow-witted Duryodhana, who has a very evil mind; That is why I feel great sadness in my heart. 26 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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