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श्लोक 15.29.16-17h  |
विदितं मम राजेन्द्र यत् ते हृदि विवक्षितम्॥ १६॥
दह्यमानस्य शोकेन तव पुत्रकृतेन वै। |
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अनुवाद |
"राजेन्द्र! मैं जानता हूँ तुम अपने मन में क्या कहना चाहते हो। तुम अपने मृत पुत्रों के शोक में निरंतर जल रहे हो।" |
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‘Rajendra! I know what you want to say in your heart. You are constantly burning with grief for your dead sons. 16 1/2. |
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