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श्लोक 15.29.1-3  |
जनमेजय उवाच
वनवासं गते विप्र धृतराष्ट्रे महीपतौ।
सभार्ये नृपशार्दूले वध्वा कुन्त्या समन्विते॥ १॥
विदुरे चापि संसिद्धे धर्मराजं व्यपाश्रिते।
वसत्सु पाण्डुपुत्रेषु सर्वेष्वाश्रममण्डले॥ २॥
यत् तदाश्चर्यमिति वै करिष्यामीत्युवाच ह।
व्यास: परमतेजस्वी महर्षिस्तद् वदस्व मे॥ ३॥ |
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अनुवाद |
जनमेजय ने पूछा - ब्रह्मन् ! जब जगत् श्रेष्ठ धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी और पुत्रवधू कुन्ती के साथ वनवास के लिए चले गए, विदुरजी सिद्धि प्राप्त करके धर्मराज युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हो गए और सभी पाण्डव आश्रम में रहने लगे, उस समय परम तेजस्वी व्यासजी ने 'मैं एक अद्भुत घटना प्रकट करूँगा' ऐसा कैसे कहा? यह मुझे बताओ ॥1-3॥ |
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Janamejaya asked – Brahman! When Dhritarashtra, the best of the world, went for exile along with his wife Gandhari and daughter-in-law Kunti, Vidurji attained Siddhi and entered the body of Dharmaraja Yudhishthir and all the Pandavas started living in the ashram, how did the most brilliant Vyas ji say that 'I will reveal a wonderful incident' happened at that time? Tell me this. 1-3॥ |
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