श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 27: युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  15.27.25 
वरं तु विष्टरं कौश्यं कृष्णाजिनकुशोत्तरम्।
प्रतिपेदे तदा व्यासस्तदर्थमुपकल्पितम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
इसके बाद व्यासजी स्वयं अपने लिए बिछाए गए काले मृगचर्म से ढके हुए सुन्दर आसन पर बैठ गए॥ 25॥
 
After this Vyasa himself sat on a beautiful cushion covered with black deerskin that was laid out for him.॥ 25॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.