श्री महाभारत » पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व » अध्याय 27: युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन » श्लोक 10-11 |
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| | श्लोक 15.27.10-11  | केकाभिर्नीलकण्ठानां दात्यूहानां च कूजितै:।
कोकिलानां कुहुरवै: सुखै: श्रुतिमनोहरै:॥ १०॥
प्राधीतद्विजघोषैश्च क्वचित् क्वचिदलंकृतम्।
फलमूलसमाहारैर्महद्भिश्चोपशोभितम्॥ ११॥ | | | अनुवाद | मोरों की मधुर काँव-काँव, दात्युहा नामक पक्षियों का कलरव और कोयल की कूक-कूक ही वहाँ की ध्वनियाँ थीं। उनके स्वर कानों और मन को अत्यंत मधुर और मोह लेने वाले थे। कहीं-कहीं स्वाध्यायी ब्राह्मणों के वेदमंत्रों की गम्भीर ध्वनि गूँज रही थी और इन सबके कारण उन आश्रमों की शोभा बहुत बढ़ गई थी और वह आश्रम फल-मूल खाने वाले महापुरुषों से सुशोभित था॥10-11॥ | | The sweet cawing of peacocks, the chirping of the birds called Daatyuha and the cooing of cuckoos were the sounds. Their voices were very pleasant and captivating to the ears and mind. At some places, the deep sound of the Vedic mantras of the self-studying Brahmins was resonating and due to all this, the beauty of those ashrams had increased a lot and that ashram was adorned with great men who ate fruits and roots.॥10-11॥ |
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