श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 27: युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  15.27.1 
वैशम्पायन उवाच
ततस्तु राजन्नेतेषामाश्रमे पुण्यकर्मणाम्।
शिवा नक्षत्रसम्पन्ना सा व्यतीयाय शर्वरी॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - हे जनमेजय! तत्पश्चात् उस आश्रम में रहने वाले, नक्षत्रमालाओं से सुशोभित सभी पुण्यात्मा पुरुषों ने उस शुभ रात्रि को सकुशल व्यतीत किया।॥1॥
 
Vaishmpayana says: O Janamejaya, thereafter all those pious men residing in that hermitage, who were adorned with garlands of stars, passed that auspicious night safely. ॥1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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