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श्लोक 15.21.5  |
सुदुष्कृतं कृतवती कुन्ती पुत्रानपश्यती।
राज्यश्रियं परित्यज्य वनं सा समरोचयत्॥ ५॥ |
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अनुवाद |
'कुन्तीदेवी ने बड़ा कठिन कार्य किया है। अपने पुत्रों के दर्शन से वंचित होकर उन्होंने राज्य का धन त्याग दिया है और वन में रहना पसन्द किया है।॥5॥ |
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‘Kuntidevi has performed a very difficult task. Being deprived of the sight of her sons, she has rejected the wealth of the kingdom and has preferred to live in the forest.॥ 5॥ |
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