श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 21: धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  15.21.5 
सुदुष्कृतं कृतवती कुन्ती पुत्रानपश्यती।
राज्यश्रियं परित्यज्य वनं सा समरोचयत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
'कुन्तीदेवी ने बड़ा कठिन कार्य किया है। अपने पुत्रों के दर्शन से वंचित होकर उन्होंने राज्य का धन त्याग दिया है और वन में रहना पसन्द किया है।॥5॥
 
‘Kuntidevi has performed a very difficult task. Being deprived of the sight of her sons, she has rejected the wealth of the kingdom and has preferred to live in the forest.॥ 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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