श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 21: धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  15.21.16 
वैराट्यास्तनयं दृष्ट्वा पितरं ते परीक्षितम्।
धारयन्ति स्म ते प्राणांस्तव पूर्वपितामहा:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
जनमेजय! उन दिनों तुम्हारे पितामह उत्तरा के पुत्र और तुम्हारे पिता परीक्षित को देखकर ही प्राण धारण करते थे।
 
Janamejaya! In those days, your grandfather used to hold on to his life only after seeing Uttara's son and your father Parikshit.
 
इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि एकविंशोऽध्याय:॥ २१॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २१॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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