श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 21: धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.21.14 
हतप्रवीरां पृथिवीं हृतरत्नां च भारत।
सदैव चिन्तयन्तस्ते न शर्म चोपलेभिरे॥ १४॥
 
 
अनुवाद
हे भरतपुत्र! जिस पृथ्वी के प्रधान योद्धा मारे गए थे और जिसकी मणियाँ चुरा ली गई थीं, उसकी दयनीय दशा का विचार करके पाण्डवों को थोड़ी देर के लिए भी शान्ति नहीं मिली॥14॥
 
O son of Bharata! The Pandavas never found peace even for a little while, thinking about the miserable condition of the earth whose chief warriors were killed and whose precious stones were stolen. ॥ 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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