श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 21: धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  15.21.11 
परं निर्वेदमगमंश्चिन्तयन्तो नराधिपम्।
तं च ज्ञातिवधं घोरं संस्मरन्त: पुन: पुन:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
राजा धृतराष्ट्र का स्मरण करके वह अत्यंत दुःखी और निराश हो जाता था। उसे अपने भाइयों के भयंकर वध का बार-बार स्मरण आता था ॥11॥
 
Remembering King Dhritarashtra, he would become extremely sad and dejected. He would repeatedly remember the terrible slaughter of his brothers. ॥11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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