श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  15.20.9 
दृष्टपूर्व: स बहुशो राजन् सम्पतता मया।
महेन्द्रसदने राजा तपसा दग्धकिल्बिष:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
उसके तप से उसके सारे पाप नष्ट हो गए। हे राजन! मैंने उस राजा को इन्द्रलोक जाते और आते समय अनेक बार देखा है॥9॥
 
All his sins were destroyed by his penance. O King! I have seen that king many times while going to and coming from Indraloka.॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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