श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  15.20.7 
स पुत्रे राज्यमासज्य ज्येष्ठे परमधार्मिके।
सहस्रचित्यो धर्मात्मा प्रविवेश वनं नृप:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
पुण्यात्मा राजा सहस्रचित्य ने राज्य का भार अपने परम पुण्यात्मा ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर तपस्या के लिए इस वन में प्रवेश किया ॥7॥
 
The virtuous king Sahasrachitya handed over the responsibility of the kingdom to his most virtuous eldest son and entered this forest for penance. 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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