श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  15.20.6 
नारद उवाच
केकयाधिपति: श्रीमान् राजाऽऽसीदकुतोभय:।
सहस्रचित्य इत्युक्त: शतयूपपितामह:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
नारदजी बोले- राजन्! पूर्वकाल में केकय देश की प्रजा का पालन करने वाले सहस्रचित्य नाम के एक यशस्वी और प्रतापी राजा थे। वे किसी से नहीं डरते थे। वे यहाँ निवास करने वाले शत्युप ऋषि के दादा थे।
 
Naradji said- King! In the past there was a famous and illustrious king named Sahasrachitya who used to take care of the subjects of Kekaya country. He was never afraid of anyone. He was the grandfather of the sage Shatyupa who is residing here.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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