श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  15.20.5 
कथान्तरे तु कस्मिंश्चिद् देवर्षिर्नारदस्तत:।
कथामिमामकथयत् सर्वप्रत्यक्षदर्शिवान्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
सब कुछ प्रत्यक्ष देखने वाले देवर्षि नारद किसी अन्य कथा के संदर्भ में यह कथा कहने लगे ॥5॥
 
The sage Devarshi Narada who could see everything directly, started narrating this tale in the context of some other story. ॥ 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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