श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  15.20.37 
वैशम्पायन उवाच
इति ते तस्य तच्छ्रुत्वा देवर्षेर्मधुरं वच:।
सर्वे सुमनस: प्रीता बभूवु: स च पार्थिव:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं: हे राजन! मुनि के ये मधुर वचन सुनकर सारी प्रजा बहुत प्रसन्न हुई और राजा धृतराष्ट्र भी इससे बहुत प्रसन्न हुए।
 
Vaishmpayana says: O King! On hearing these sweet words of the sage, all the people became very happy and King Dhritarashtra too was very pleased by this.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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