|
|
|
श्लोक 15.20.25  |
अस्ति काचिद्विवक्षा तु तां मे निगदत: शृणु।
धृतराष्ट्रं प्रति नृपं देवर्षे लोकपूजित॥ २५॥ |
|
|
अनुवाद |
‘पूज्य देवर्षि! मुझे राजा धृतराष्ट्र के विषय में कुछ कहने या पूछने की इच्छा हो रही है। मैं अपनी इच्छा आपसे कह रहा हूँ, कृपया सुनें॥ 25॥ |
|
‘Venerable Devarshi! I have a desire to say or ask something about King Dhritarashtra. I am telling you about my desire, please listen.॥ 25॥ |
|
✨ ai-generated |
|
|