श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  15.20.25 
अस्ति काचिद्‍‍विवक्षा तु तां मे निगदत: शृणु।
धृतराष्ट्रं प्रति नृपं देवर्षे लोकपूजित॥ २५॥
 
 
अनुवाद
‘पूज्य देवर्षि! मुझे राजा धृतराष्ट्र के विषय में कुछ कहने या पूछने की इच्छा हो रही है। मैं अपनी इच्छा आपसे कह रहा हूँ, कृपया सुनें॥ 25॥
 
‘Venerable Devarshi! I have a desire to say or ask something about King Dhritarashtra. I am telling you about my desire, please listen.॥ 25॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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