श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 20: नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तप:सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  15.20.11 
तथा पृषध्रो राजाऽऽसीद् राजन् वज्रधरोपम:।
स चापि तपसा लेभे नाकपृष्ठमितो गत:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
महाराज! राजा पृषध्र वज्रधारी इन्द्र के समान पराक्रमी थे। उन्होंने भी तप के बल से इस लोक को त्यागकर स्वर्ग प्राप्त किया था॥11॥
 
Maharaj! King Prishadhra was as powerful as Indra, the bearer of thunderbolt. He too had attained heaven after leaving this world by the power of penance. ॥11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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