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श्लोक 15.16.9  |
इत्युक्ता धर्मराजेन बाष्पव्याकुललोचना।
जगामैव तदा कुन्ती गान्धारीं परिगृह्य ह॥ ९॥ |
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अनुवाद |
जब धर्मराज युधिष्ठिर ने यह कहा तो कुंती की आंखें भर आईं, लेकिन फिर भी वह गांधारी का हाथ पकड़कर चलती रहीं। |
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When Dharmaraja Yudhishthira said this, Kunti's eyes filled with tears, but she still kept walking holding Gandhari's hand. |
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