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श्लोक 15.16.32  |
अन्वयु: पाण्डवास्तां तु सभृत्यान्त:पुरास्तथा।
तत: प्रमृज्य साश्रूणि पुत्रान् वचनमब्रवीत्॥ ३२॥ |
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अनुवाद |
पाण्डव भी अपने सेवकों और हरम की स्त्रियों के साथ उनके पीछे-पीछे गए और अपने आँसू पोंछते हुए अपने पुत्रों से इस प्रकार बोले। |
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The Pandavas too, accompanied by their servants and the women of the harem, followed them. Then, wiping away their tears, they spoke thus to their sons. 32. |
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इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि कुन्तीवनप्रस्थाने षोडशोऽध्याय:॥ १६॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें कुन्तीका वनको प्रस्थानविषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १६॥
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