श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  15.16.27 
वनाच्चापि किमानीता भवत्या बालका वयम्।
दु:खशोकसमाविष्टौ माद्रीपुत्राविमौ तथा॥ २७॥
 
 
अनुवाद
‘जब आपको वन जाना ही था, तब आप मुझे और माद्री के पुत्रों को, जो शोक और शोक में डूबे हुए थे, बाल्यकाल में ही वन से नगर में क्यों ले आए?॥ 27॥
 
‘When you had to go to the forest, why did you bring me and the sons of Madri, who were drowned in grief and sorrow, from the forest to the city in our childhood?॥ 27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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