श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  15.16.24 
इति बाष्पकला वाच: कुन्ती पुत्रस्य शृण्वती।
सा जगामाश्रुपूर्णाक्षी भीमस्तामिदमब्रवीत्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
अपने पुत्र के ये अश्रुपूर्ण वचन सुनकर कुन्ती की आँखों में आँसू भर आए, किन्तु वह अपने को रोक न सकी। वह आगे बढ़ती रही। तब भीमसेन ने उससे कहा -॥24॥
 
Hearing these tearful words of her son, Kunti's eyes welled up with tears but she could not stop herself. She kept moving forward. Then Bhimasena said to her -॥ 24॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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