श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  15.16.23 
अस्मानुत्सृज्य राज्यं च स्नुषा हीमा यशस्विनि।
कथं वत्स्यसि दुर्गेषु वनेष्वद्य प्रसीद मे॥ २३॥
 
 
अनुवाद
हे माता यशस्विनी! आप हमें, अपनी पुत्रवधुओं को और इस राज्य को छोड़कर उन दुर्गम वनों में कैसे रह सकती हैं? अतः आप हम पर कृपा करके यहीं रहें।॥23॥
 
Mother Yashaswini! How can you leave us, your daughters-in-law and this kingdom and live in those remote forests? So please be kind to us and stay here.'॥ 23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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