श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  15.16.22 
क्व सा बुद्धिरियं चाद्य भवत्या यच्छ्रुतं मया।
क्षत्रधर्मे स्थितिं चोक्त्वा तस्याश्च्यवितुमिच्छसि॥ २२॥
 
 
अनुवाद
कहाँ गई तुम्हारी बुद्धि और कहाँ गया तुम्हारा यह विचार? मैंने तुम्हारे विषय में जो विचार सुने हैं, उनके अनुसार हम लोगों को क्षत्रिय-धर्म में दृढ़ रहने का उपदेश देकर तुम स्वयं ही उससे च्युत होना चाहते हो॥ 22॥
 
Where is your wisdom and where is this thought of yours? According to the thoughts I have heard of you, by preaching to us to remain steadfast in the kshatriya-dharma, you yourself want to fall from it.॥ 22॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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