श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  15.16.2 
स राजा राजमार्गेण नृनारीसंकुलेन च।
कथंचिन्निर्ययौ धीमान् वेपमान: कृताञ्जलि:॥ २॥
 
 
अनुवाद
सारा मार्ग स्त्री-पुरुषों से भरा हुआ था। उस पर चलते हुए बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र बड़ी कठिनाई से आगे बढ़ पा रहे थे। उनके दोनों हाथ जुड़े हुए थे और शरीर काँप रहा था॥2॥
 
The entire road was crowded with men and women. Walking on it, the wise king Dhritarashtra could hardly move forward. Both his hands were joined and his body was trembling.॥2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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