श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  15.16.19 
किमिदं ते व्यवसितं नैवं त्वं वक्तुमर्हसि।
न त्वामभ्यनुजानामि प्रसादं कर्तुमर्हसि॥ १९॥
 
 
अनुवाद
'माताजी! आपने क्या निश्चय किया है? आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए। मैं आपको वन जाने की अनुमति नहीं दे सकता। कृपया मुझ पर कृपा करें॥19॥
 
‘Mataji! What have you decided? You should not say such a thing. I cannot allow you to go to the forest. Please be kind to me.॥19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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