श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  15.16.17 
वैशम्पायन उवाच
एवमुक्त: स धर्मात्मा भ्रातृभि: सहितो वशी।
विषादमगमद् धीमान् न च किंचिदुवाच ह॥ १७॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! अपनी माता की यह बात सुनकर मन को वश में रखने वाले धर्मात्मा और बुद्धिमान युधिष्ठिर तथा उनके भाई अत्यन्त दुःखी हो गये। वे कुछ भी नहीं बोले।
 
Vaishampayana says - Janamejaya! On hearing his mother say this, the virtuous and intelligent Yudhishthira, who controlled his mind, and his brothers became very sad. They did not say anything.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.