श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.16.14 
तन्निमित्तं महाबाहो दानं दद्यास्त्वमुत्तमम्।
सदैव भ्रातृभि: सार्धं सूर्यजस्यारिमर्दन॥ १४॥
 
 
अनुवाद
हे महाबाहु! शत्रुमर्दन! अपने भाइयों के साथ तुम सूर्यपुत्र कर्ण को सदैव उत्तम दान देते रहो॥14॥
 
Great arms! Shatrumardan! Along with your brothers, you always keep giving good donations to Surya's son Karna. 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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