श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  15.16.11 
कर्णं स्मरेथा: सततं संग्रामेष्वपलायिनम्।
अवकीर्णो हि समरे वीरो दुष्प्रज्ञया तदा॥ ११॥
 
 
अनुवाद
तू अपने भाई कर्ण को सदैव स्मरण रख, जिसने युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी ही मूर्खता के कारण वह वीर युद्ध में मारा गया ॥11॥
 
Always remember your brother Karna, who never turned his back in a battle, because due to my foolishness, that brave man was killed in the war. ॥ 11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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