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श्लोक 15.16.10  |
कुन्त्युवाच
सहदेवे महाराज माप्रसादं कृथा: क्वचित्।
एष मामनुरक्तो हि राजंस्त्वां चैव सर्वदा॥ १०॥ |
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अनुवाद |
जाते समय कुन्ती ने कहा- महाराज! आपको सहदेव पर कभी अप्रसन्न नहीं होना चाहिए। हे राजन! वह सदैव मुझमें और आपमें समर्पित रहा है॥ 10॥ |
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While leaving Kunti said- Maharaj! You should never be displeased with Sahadeva. O King! He has always been devoted to me and you.॥ 10॥ |
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