श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  15.16.10 
कुन्त्युवाच
सहदेवे महाराज माप्रसादं कृथा: क्वचित्।
एष मामनुरक्तो हि राजंस्त्वां चैव सर्वदा॥ १०॥
 
 
अनुवाद
जाते समय कुन्ती ने कहा- महाराज! आपको सहदेव पर कभी अप्रसन्न नहीं होना चाहिए। हे राजन! वह सदैव मुझमें और आपमें समर्पित रहा है॥ 10॥
 
While leaving Kunti said- Maharaj! You should never be displeased with Sahadeva. O King! He has always been devoted to me and you.॥ 10॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.