श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 16: धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  15.16.1 
वैशम्पायन उवाच
तत: प्रासादहर्म्येषु वसुधायां च पार्थिव।
नारीणां च नराणां च नि:स्वन: सुमहानभूत्॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं: हे पृथ्वी के स्वामी! तत्पश्चात्, महलों और बुर्जों में तथा पृथ्वी पर भी रोते हुए नर-नारियों का महान कोलाहल फैल गया।॥1॥
 
Vaishmpayana says: O Lord of the Earth! Thereafter, a great uproar of weeping men and women spread in the palaces and towers as well as on the earth. ॥1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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