श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 14: राजा धृतराष्ट्रके द्वारा मृत व्यक्तियोंके लिये श्राद्ध एवं विशाल दान-यज्ञका अनुष्ठान  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  15.14.1 
वैशम्पायन उवाच
विदुरेणैवमुक्तस्तु धृतराष्ट्रो जनाधिप:।
प्रीतिमानभवद् राजन् राज्ञो जिष्णोश्च कर्मणि॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायन कहते हैं-महाराज जनमेजय! विदुर की यह बात सुनकर राजा धृतराष्ट्र युधिष्ठिर और अर्जुन के कार्यों से बहुत प्रसन्न हुए। ॥1॥
 
Vaishmpayana says: Maharaja Janamejaya! Upon hearing Vidur say this, King Dhritarashtra became very pleased with the deeds of Yudhishthira and Arjuna. ॥1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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