श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 13: विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरका उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  15.13.7 
न च मन्युस्त्वया कार्य इति त्वां प्राह धर्मराट्।
संस्मृत्य भीमस्तद्वैरं यदन्यायवदाचरत्॥ ७॥
 
 
अनुवाद
धर्मराज ने तुमसे कहा है कि तुम पूर्व वैर का स्मरण करके भीमसेन पर क्रोध न करो, क्योंकि वे कभी-कभी तुम्हारे साथ अन्याय करते हैं॥ 7॥
 
Dharmaraja has told you that you should not be angry with Bhimasena for sometimes doing injustice to you, remembering the past enmity.॥ 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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