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श्लोक 15.12.6  |
वैशम्पायन उवाच
इत्युक्त्वा धर्मराजस्तमर्जुनं प्रत्यपूजयत्।
भीमसेन: कटाक्षेण वीक्षां चक्रे धनंजयम्॥ ६॥ |
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अनुवाद |
वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर धर्मराज ने अर्जुन की बहुत प्रशंसा की। उस समय भीमसेन ने अर्जुन की ओर उपहासपूर्ण दृष्टि से देखा। |
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Vaishampayana says- Janamejaya! Saying this, Dharmaraja praised Arjun a lot. At that time Bhimsena looked at Arjun with a sneer. 6. |
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