श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 12: अर्जुनका भीमको समझाना और युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  15.12.13 
इदं चापि शरीरं मे तवायत्तं जनाधिप।
धनानि चेति विद्धि त्वं न मे तत्रास्ति संशय:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
हे जनेश्वर! उनसे कहो कि मेरा यह शरीर और मेरी समस्त सम्पत्ति तुम्हारे अधीन है। इसे तुम भलीभाँति जान लो। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है।॥13॥
 
‘Tell him, O Janeshwar! This body of mine and all my wealth are under your control. You should know this very well. I have no doubt in this matter.’॥ 13॥
 
इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि युधिष्ठिरानुमोदने द्वादशोऽध्याय:॥ १२॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें युधिष्ठिरका अनुमोदनविषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १२॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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