श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 10: प्रजाकी ओरसे साम्ब नामक ब्राह्मणका धृतराष्ट्रको सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  15.10.17 
यथा ब्रवीति धर्मात्मा मुनि: सत्यवतीसुत:।
तथा कुरु महाराज स हि न: परमो गुरु:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
महाराज! सत्यवती के पुत्र महर्षि व्यास जैसा उपदेश देते हैं वैसा ही करो, क्योंकि वे हम सबके परम गुरु हैं॥17॥
 
Maharaj! Do as the great sage Vyasa, the son of Satyavati, advises you because he is the supreme guru of all of us.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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