श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  »  अध्याय 10: प्रजाकी ओरसे साम्ब नामक ब्राह्मणका धृतराष्ट्रको सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  15.10.14 
यथा वदसि राजेन्द्र सर्वमेतत् तथा विभो।
नात्र मिथ्या वच: किंचित् सुहृत्त्वं न: परस्परम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
'राजेन्द्र! प्रभु! आप जो कुछ कह रहे हैं, वह सत्य है। इसमें असत्य का लेशमात्र भी नहीं है। वास्तव में, इस वंश और हमारे बीच एक दृढ़ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गया है॥ 14॥
 
‘Rajendra! Prabhu! Whatever you are saying is correct. There is not even a trace of untruth in it. In fact, a strong cordial relationship has been established between this dynasty and us.॥ 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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