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श्लोक 15.10.14  |
यथा वदसि राजेन्द्र सर्वमेतत् तथा विभो।
नात्र मिथ्या वच: किंचित् सुहृत्त्वं न: परस्परम्॥ १४॥ |
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अनुवाद |
'राजेन्द्र! प्रभु! आप जो कुछ कह रहे हैं, वह सत्य है। इसमें असत्य का लेशमात्र भी नहीं है। वास्तव में, इस वंश और हमारे बीच एक दृढ़ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गया है॥ 14॥ |
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‘Rajendra! Prabhu! Whatever you are saying is correct. There is not even a trace of untruth in it. In fact, a strong cordial relationship has been established between this dynasty and us.॥ 14॥ |
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