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श्लोक 15.1.27  |
न हि तत् तस्य वीरस्य हृदयादपसर्पति।
धृतराष्ट्रस्य दुर्बुद्ध्या यद् वृत्तं द्यूतकारितम्॥ २७॥ |
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अनुवाद |
वीर भीमसेन के हृदय से यह विचार कभी नहीं गया कि जुए के दौरान जो कुछ भी अनर्थ हुआ था, वह धृतराष्ट्र की गलत बुद्धि का परिणाम था। |
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This thought never went away from the heart of the valiant Bhimasena that whatever misfortune had happened during the gambling was the result of Dhritarashtra's wrong wisdom. |
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इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि प्रथमोऽध्याय:॥ १॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकपर्वके अन्तर्गत आश्रमवासपर्वमें पहला अध्याय पूरा हुआ॥ १॥
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