श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य  »  श्लोक d8
 
 
श्लोक  14.98.d8 
प्रणश्यत्यम्बुपानेन बुभुक्षा च युधिष्ठिर।
तृषितस्य न चान्नेन पिपासाभिप्रणश्यति।
तस्मात् तोयं सदा देयं तृषितेभ्यो विजानता॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर! भूख तो जल पीने से मिट जाती है; परन्तु प्यासे की प्यास भोजन से नहीं बुझती; इसलिए बुद्धिमान् पुरुष को चाहिए कि प्यासे को सदैव जल पिलाए।
 
‘Yudhishthira! Hunger is satiated by drinking water; but the thirst of a thirsty person cannot be quenched by food, that is why a wise person should always give water to a thirsty person.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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